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भिनोदा-गगोरी सड़क बनी मौत का रास्ता—हजारों की जिंदगी खतरे में,प्रशासन बेपरवाह

 वन्दे भारत लाइव टीवी न्यूज़ डिस्ट्रिक्ट हेड चित्रसेन घृतलहरे(पेंड्रावन)सरसींवा (सारंगढ़-बिलाईगढ़), 27 जुलाई 2025//सरकारी दस्तावेजों में “विकास” के दावे गूंज रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही है। भिनोदा से गगोरी तक जाने वाली सड़क की हालत इस कदर खस्ताहाल हो चुकी है कि वह आम लोगों के लिए रोज़मर्रा की सुविधा नहीं, बल्कि जानलेवा मुसीबत बन गई है। एक से डेढ़ फीट तक के गहरे गड्ढों से भरा यह मार्ग अब सड़क कम और त्रासदी अधिक दिखती है।

ग्रामीणों का कहना है कि बरसात में यह सड़क कीचड़ और दलदल में तब्दील हो जाती है, जबकि गर्मी में धूल और धक्का-मुक्की के बीच दुर्घटनाएं आम हो चुकी हैं। इस रास्ते से प्रतिदिन 4 से 5 हजार लोग गुजरते हैं, जिनमें स्कूली बच्चे, शिक्षक, किसान, मज़दूर, दुकानदार और मरीज शामिल हैं।

“यह सड़क नहीं, चलती फिरती आपदा है,” — एक ग्रामीण ने कहा। उन्होंने बताया कि स्कूली बच्चों की साइकिलें रोज़ गिरती हैं, गर्भवती महिलाओं को भारी दिक्कत होती है और बुजुर्ग लाठी के सहारे भी नहीं चल पाते।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि यही मार्ग इस क्षेत्र के लिए एम्बुलेंस का मुख्य रूट है। लेकिन सड़क की स्थिति ऐसी है कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही मरीज़ दम तोड़ सकता है।

ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने कई बार जनप्रतिनिधियों से लेकर कलेक्टर तक आवेदन, शिकायतें और ज्ञापन दिए, समाचार पत्रों में भी खबरें छपवाईं, लेकिन हर बार केवल आश्वासन ही मिला। सड़क जस की तस बनी रही।

ग्रामीणों की चेतावनी:

अब गांव के लोगों ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि जल्द से जल्द इस सड़क की मरम्मत नहीं की गई तो वे सड़क पर बैठकर प्रदर्शन करेंगे, कलेक्टोरेट का घेराव करेंगे और ज़रूरत पड़ी तो आमरण अनशन भी शुरू किया जाएगा।


सवाल प्रशासन से:

ग्रामीणों ने सीधे सवाल किया है —

“क्या शासन-प्रशासन किसी मासूम की मौत का इंतजार कर रहा है?”
“क्या गर्भवती महिला के गर्भपात या किसी शिक्षक की दुर्घटना के बाद ही सुध ली जाएगी?”
“क्या सरकार ही गड्ढे में है, जो इन्हें यहां के गड्ढे नहीं दिखते?”

यह सड़क केवल जर्जर नहीं, बल्कि शासन की संवेदनहीनता और प्रशासनिक विफलता का जीवंत उदाहरण बन चुकी है।

भिनोदा से गगोरी तक का यह मार्ग अब ग्रामीणों के लिए रोज़ की यातना बन चुका है। सवाल अब सिर्फ सड़क की मरम्मत का नहीं, बल्कि इंसानियत, जवाबदेही और ज़िम्मेदारी का है। अगर अब भी शासन नहीं जागा, तो आने वाली पीढ़ियाँ यही पूछेंगी —

“गांव में गड्ढे थे, या सरकार ही गड्ढे में थी?”

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